Wednesday, September 5, 2012

Found an old hindi poem - Jiyo, utho, badho, jeeto!

जीवन की उलझनों के धागों मैं फंसा
बैठा मैं खो अपनी हंसी,
वोह चंचल आवाज़, वोह सुन्दर मुस्कराहट
वोह नटखट आँखे, वोह प्यारी बातें|
खुद से बातें करता मैं, यूँ ही चलता चलता मैं
आ गया इक बगीचे मैं,
हँसती हुई तितली ने मुझे पुकारा,
खिसियाती हुई गिलहरी ने मुझे बुलाया
मुस्कुराती हुई कलि ने मेरी और देखा,
पर मैंने किया सब अनदेखा|
इस पर बूढ़े पेड़ ने, मुझे बुलाया,
नम आँखों से देखते हुए मैंने अपना सर उठाया,
पुछा उसने, गुलिस्तान मैं आकर भी आंसू बहाते हो क्यूँ?
इन पंछियों की चेहेक से कतराते हो क्यूँ?
मुझे भी तो बताओ, ग़म छुपाते हो क्यूँ|
आंसूं आखों से पलकों तक आये, और फिर छलकने मैं देर न लगी
कहा मैंने, सब कुछ हो रहा है गलत,
चाहता हूँ मैं अछाई का साथ देना,
चाहता हूँ मैं इस जहां को भी गुलिस्तान बनाना,
पर नहीं कह पाता कुछ, नहीं सजा पाता इसे|
करना तो मैं बहुत कुछ चाहता हूँ, पर कुछ भी नहीं कर पाता मैं
तुम ही बताओ, क्या मैं न दुखी होऊं?
इस पर बूढ़े वृक्ष ने मुस्कुरा के कहा,
सब जानता हूँ मैं, सब समझता हूँ,
सिर्फ एक बात तुमसे कहता हूँ,
जियो उठो बढ़ो जीतो,
खुश रहो, मुस्कुराओ,
तेरा मेरा जहाँ|